उत्तराखंड के सूचना विभाग में समाचारपत्र प्रकाशकों के साथ घनघोर अंसवैधानिक व्यवहार/आरटीआई समाचार अपने दायित्व निर्वहन में फिर आया आगे,कार्यालयाध्यक्ष आशीष त्रिपाठी को पुनः भेजा लिखित पत्र

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देहरादून-हमारे देश का संविधान सभी से समान व्यवहार की बात कहता है, लेकिन उत्तराखंड के सूचना विभाग में समाचारपत्र के संचालकों के साथ घनघोर अंसवैधानिक व्यवहार किया जा रहा है और इस असंवैधानिक कृत्य के लिए यदि कोई सर्वाधिक उत्तरदाई है तो वह है सूचना विभाग के कार्यालयाध्यक्ष/अपर निदेशक आशीष त्रिपाठी। पाठकों को सिलसिलेवार ढंग से स्पष्ट करते हैं।

A-प्रिंट मीडिया विज्ञापन नियमावली के अनुसार किसी भी दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक समाचार पत्र के स्वामी/संचालक 18 माह तक नियमित प्रकाशन के उपरांत विभागीय विज्ञापनों हेतु सूचना विभाग में आवेदन कर सकते हैं। फिर सूचना विभाग प्रसार के आधार पर विभागीय या डीएवीपी दर पर सम्बंधित समाचार पत्र को विज्ञापनों हेतु सूचीबद्ध कर लेता है। और समाचारपत्र को विज्ञापन जारी करने लगता है।

B- 36 से 48 माह तक नियमित प्रकाशन के बावजूद विज्ञापन सूचीबद्धता के आवेदन तक करने का अवसर नहीं:-

जो सूचना विभाग प्रिंट, इलैक्ट्रोनिक, सोशल मीडिया आदि के लिए अनेक नियमावलियां बनाकर प्रकाशकों पर निरंतर दवाब बनाए रखने की कोशिश करता रहता है। स्वयं सूचना विभाग का कृत्य देखिए।

समाचारपत्र स्वामी/संचालकों को नियमित समाचारपत्र प्रकाशित करते हुए 18 माह की कौन कहे 36 से लेकर 48 माह तक हो चुके हैं। आशीष त्रिपाठी के नेतृत्व वाला सूचना विभाग इनको विज्ञापन देने की कौन कहे,इन समाचारपत्रों के संचालकों को विज्ञापन हेतु सूचीबद्धता के आवेदन तक अवसर नहीं दे रहा है।

C-चन्द माह के प्रकाशन पर लाखों रुपए के कामर्शियल विज्ञापन दिलाने की धड़ल्ले से संस्तुति कर रहे हैं कार्यालयाध्यक्ष आशीष त्रिपाठी:-

सूचना विभाग के सर्वेसर्वा अपर निदेशक एवं कार्यलयाध्यक्ष आशीष त्रिपाठी जी का कारनामा समझिए। एक ओर तो 36 से 48 तक नियमित प्रकाशन के उपरांत भी आवेदन तक का अवसर न देकर संचालकों के साथ घनघोर अन्याय कर उन्हें आर्थिक संकट में ढकेला जा रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों को चार छह माह के प्रकाशन के बाद ही धड़ल्ले से संस्तुति कर लाखों रुपए के कामर्शियल विज्ञापन दिलाए जा रहे हैं।

D-घनघोर असंवैधानिक भेदभाव के लिए आखिर आशीष त्रिपाठी ही दोषी क्यों :-

आरटीआई समाचार की इस मुहिम पर कुछ लोग यह कहकर सवाल खड़ा कर रहे हैं कि इन कृत्यों के लिए आशीष त्रिपाठी ही जिम्मेदार क्यों और कैसे हैं। पाठक गण स्वयं ही सोचें महानिदेशक को तो प्रत्येक नियमावली के प्रत्येक नियम की जानकारी नहीं है। इसीलिए प्रत्येक पत्रावली को कार्यलयाध्यक्ष आशीष त्रिपाठी की संस्तुति के उपरांत ही महानिदेशक को भेजा जाता है।

ऐसी स्थिति में आशीष त्रिपाठी का ही वैधानिक उत्तरदायित्व बन जाता है कि वह प्रत्येक बिंदु पर न केवल अपने हस्तलेख में नियमों का स्पष्ट ब्यौरा लिखें वरन आवश्यकतानुसार महानिदेशक से मुलाकात कर उनको स्पष्ट रूप से अवगत भी कराएं।

E-इस प्रकार उत्तराखंड के सूचना विभाग में नियमों के अनुपालन के संरक्षक आशीष त्रिपाठी ही लघु समाचारपत्रों के संचालकों के साथ असंवैधानिक ढंग से भेदभाव कर रहे हैं और ऐसे दुर्भाग्यशाली प्रकाशकों को गम्भीर आर्थिक संकट में डाल रहे हैं।

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