सूचना विभाग द्वारा साप्ताहिक पाक्षिक समाचार-पत्रों की घोर उपेक्षा पर मुखर हुई दो यूनियनें/एक सप्ताह में विज्ञापन जारी न होने पर प्रथम चरण में महानिदेशक के समक्ष होगा प्रतीकात्मक विरोध दर्ज

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देहरादून- उत्तराखंड के साप्ताहिक, पाक्षिक विशेषकर उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के पाक्षिक व साप्ताहिक अखबारों की सूचना विभाग द्वारा घोर उपेक्षा की जा रही है।। सूचना विभाग की इस घोर उपेक्षा से पहाड़ी क्षेत्रों के पत्रकारों के समक्ष आजीविका का संकट खड़ा हो गया है।

पहाड़ी क्षेत्रों के अखबार संचालकों के समक्ष उत्पन्न इस विकट परिस्थिति में उत्तराखंड की दो यूनियनों ने मुखरता से विरोध दर्ज कराया है।इन्डियन ऐसोसिएशन आफ प्रेस एन मीडिया मैन के राष्ट्रीय महासचिव डी डी मित्तल व लघु समाचारपत्र एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष सुरेन्द्र अग्रवाल ने गहरा क्षोभ व्यक्त किया है। इस सम्बन्ध में सर्वप्रिय महानिदेशक बंशीधर तिवारी जी से तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हुए प्रदेश के साप्ताहिक व पाक्षिक समाचार-पत्रों के साथ न्याय करने की मांग की है।

A- 26 जनवरी के बाद से छह माह बाद अभी तक सूचना विभाग ने नहीं दिया है एक भी विज्ञापन:-

उत्तराखंड के जिस सूचना विभाग ने देश भर के अखबारों में जबरदस्त और बेहद सराहनीय कैम्पन चलाकर “उत्तराखंड इन्वेस्टर समिट” को शानदार सफल बनाया,वही सूचना विभाग अपने ही राज्य के साप्ताहिक व पाक्षिक समाचार-पत्रों को भूल गया। लगभग छह माह पूर्व 26 जनवरी को केवल 950 वर्ग सेमी यानि छोटे साइज के एक पृष्ठ का विज्ञापन जारी किया गया था। इसके उपरांत कोई विज्ञापन नहीं दिया गया।

B-पहाडी क्षेत्र के छोटे जनपदों के अखबारों के साथ हुआ सर्वाधिक अन्याय:-

26 जनवरी के बाद लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने तक विशेषांक के रूप में विभाग ने खूब विज्ञापन बांटे। लेकिन विशेषांक लेने में भी देहरादून, हरिद्वार जैसे जनपदों के साप्ताहिक, पाक्षिक के स्वामीगण ही सूचना निदेशालय में ठोस पैरवी कर विज्ञापन हासिल कर सके।
जबकि पहाड़ी और दुर्गम जिलों तथा बागेश्वर, चम्पावत, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा,चमोली, उत्तरकाशी आदि क्षेत्रों के अखबार संचालक सूचना निदेशालय तक नहीं आ सके तो सूचना विभाग को भी इन दुर्गम और पहाडी क्षेत्रों के अखबारों का ख्याल तक नहीं आया।

महानिदेशक को सम्बोधित एक बयान में उत्तराखंड के वरिष्ठतम पत्रकार डी डी मित्तल ने कहा कि हरेला पर्व पर सूचना विभाग द्वारा तीन महीने बाद 600 सेंटी मीटर का विज्ञापन दैनिक समाचार पत्रों को जारी किया गया है लेकिन साप्ताहिक , पाक्षिक एवं मासिक समाचार पत्रों की पूर्णतः अनदेखी की गई है।

C-राज्य सरकार की प्रथम वर्षगांठ के अवसर पर जारी होने वाले विज्ञापन को ही लोकसभा चुनाव से पूर्व जारी कर सकता था विभाग:-

सदैव से राज्य सरकार की वर्षगांठ पर राज्य से प्रकाशित सभी अखबारों को अनिवार्य रूप से विज्ञापन दिया जाता रहा है, लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू हो जाने की वजह से इस बार यह विज्ञापन जारी नहीं किया जा सका।

परन्तु वर्षगांठ वाला विज्ञापन यदि फरबरी के अंतिम सप्ताह में जारी कर दिया जाता तो अधिकांश पत्र-पत्रिकाओं में आचार संहिता से पूर्व प्रकाशित हो सकता था और पहाड़ी अंचलों के पत्रकारों को कुछ आर्थिक सहायता हो सकती थी।

D-पहाडी क्षेत्रों के अखबारों की उपेक्षा क्यों कर रहे हैं सूचना विभाग के अधिकारी :-

आचार संहिता लगने से पूर्व सूचना विभाग द्वारा दिए गए विज्ञापनों का यदि अध्ययन किया जाए तो यह स्पष्ट होगा कि सूचना विभाग के अधिकारियों को साप्ताहिक, पाक्षिक समाचार-पत्रों को विज्ञापन जारी करने में कोई हिचकिचाहट नहीं रही है। इन श्रेणियों के अखबारों को भी खूब विशेषांक दिए गए।

बस पहाडी क्षेत्रों के अखबारों की ही कोई सुध नहीं ली गई। ऐसा क्यों हुआ,यह एक यक्ष प्रश्न है।

E-एक सप्ताह में साप्ताहिक व पाक्षिक समाचार-पत्रों को विज्ञापन जारी नहीं किया गया, तो महानिदेशक के समक्ष विरोध किया जाएगा दर्ज :-

सूबे के पत्रकारों को महानिदेशक बंशीधर तिवारी जी पर पूर्णतया भरोसा है कि वह अवश्य साप्ताहिक पाक्षिक समाचार-पत्रों की हो रही इस घोर उपेक्षा का संज्ञान लेकर,इन वर्गों के अखबार संचालकों के साथ न्याय करेंगे। लेकिन यदि एक सप्ताह में इस न्यायोचित मांग पर सकारात्मक कार्यवाही नहीं की गई तो प्रथम चरण में प्रतीकात्मक विरोध दर्ज कराया जाएगा।

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