गढ़भोेज अभियान का सफरनामा

Uttarakhand

उतरकाशी। गढ़भोेज अभियान उतराखण्ड के परंपरागत मोटे अनाजों से बनने वाले परंपरागत भोजन को मुख्यधारा से जोड़कर आर्थिकी का माध्यम बनाने का अभियान है। कोदा झंगोरा खाएंगे, उतराखण्ड बनाएंगे पृथक उत्तराखंड आंदोलन का ये नारा महज एक नारा नहीें बल्कि एक संपूर्ण विचार था। जिसने न सिर्फ राज्य की अवधारणा को जन्म दिया बल्कि ऐसे स्वावलंबन के विचार को भी जन्म दिया जो मूर्त रूप लेने पर यहां की छोटी जोत वाली कृषि पर आधारित आर्थिकी और बाजार व्यवस्था में छोटे किसानों के उत्पादों की मांग और उपलब्धता गावों में ही कराकर सुधार ला सकता है। मोटे अनाजों से बनने वाला उतराखण्ड का परंपरागत भोजन यहां की जलवायु के चलते स्वादिष्ट, पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर है। अपने औषधीय गुणों के कारण परंपरागत भोजन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने में भी सहायक रहा है। लेकिन लंबे समय तक अंग्रेजो के गुलाम रहने के कारण उनकी उपभोग की वस्तुएं मुख्यधारा से जुड़ती गई और औषधीय गुणों से युक्त गरीबो का मोटा अनाज पिछड़ता गया। हरित क्रांति के दौर में जब गेहूं और धान को विशेष नीतिगत समर्थन मिला तो उस दौर से परंपरागत मोटे अनाज पिछड़ते गए। हमने सिर्फ इंसानो के साथ रंगभेद के बारे में सुना था लेकिन यह तो रंगभेद अनाजों से भी था जो आजादी के बाद भी जारी रहा। परंपरागत फसल के उत्पादन करने वाले लोगों के साथ भी फसलों को लेकर भेदभाव होता था। जबकि उतराखण्ड की खेती का परंपरागत पैटर्न एकदम वैज्ञानिक था। पानी की उपलब्धता, अनुपलब्धता एवं ढाल के हिसाब से खेती होती थी। पहाड़ में सिंचाई गूल व नहरो का ज्यादा पूराना इतिहास नही है इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि इन क्षेत्रों में प्रमुख रूप से मोटा अनाजों की खेती होती थी। अलग-अलग फसल उत्पादन करने वाले क्षेत्र के लोग आपस में फसल विनिमय करते थे।
असल में उतराखण्ड का पारंपरिक भोजन दुनिया के चुनिंदा भोजन में से एक है जो भूख मिटाने के साथ साथ औषधी का काम भी करता है। उतराखण्ड के परंपरागत मोटे अनाजों के उत्पादन में पानी की खपत भी कम होती है। रासायनिक खाद की तो आवश्यकता ही नही, ऐसे कई कारण है जो मोटे अनाजों को विशेष बनाते है। बात पोषण की ही नही, उत्पादन के लिहाज से भी ये अनाज कई खूबियों से लैस है। सही मायने में ये किसान की हितैषी फसलें है। इनकी खूबियां देखकर कहा जा सकता है की इन्हें प्रकृति ने स्वयं चुना है। ये अनाज विषम परिस्थितियों मसलन पानी की कमी, बीमारी इत्यादि से जूझने की खूबी लिए होते है। इनकी खेती सस्ती और कम चिंता वाली होती है। इन अनाजों का भंडारण आसान है और ये लंबे समय तक सही बने रहते है। परंपरागत फसलें पारिस्थितकी तंत्र में संतुलन बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद इनको पीछे धकेला गया।

इतनी खूबियों वाली फसलों से बनने वाले भोजन को पूरे देश में गढभोज के नाम से पहचान दिला कर थाली का हिस्सा व आर्थिकी का जरिया बनाने के साथ स्वस्थ समाज की कल्पना के उददेश्य से हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान ”जाड़ी“ द्वारा राज्य गठन के बाद वर्ष 2000 से राज्य में गढभोज अभियान शुरू किया गया। अभियान का असर है कि आज उतराखण्ड राज्य व राज्य से बाहर स्वैच्छिक संगठनों व सरकारी विभागो के द्वारा उतराखण्ड के भोजन की स्टाल लगाई जाने लगी। शादी विवाह के बूफे में गढभोज ने अपना स्थान बनाया। गढभोज को मंजिल तक पहुचाने में मेरे द्वारा की गई कन्याकुमारी से देहरादून उतराखण्ड व न्यूजलपाईगुड़ी पश्चिम बंगाल से उतराखण्ड देहरादून तक की साईकिल यात्रा में मिले अनुभवों ने भी काफी सहयोग किया। परंपरागत भोजन को गढभोज के रूप में थाली व आर्थिकी का माध्यम बनाने के लिये 21 वर्षो तक कई स्तर पर कार्य किया गया जिसके परिणाम स्वरूप आज गढभोज मुख्यधारा से जुड़ पाया।

प्रयोगीकरण दौर – हमारी जनपद उतरकाशी के छोटे से कस्बे कमद में दुकान और ढाबा हुआ करता था जिसमें पिताजी अक्सर लाल चावल, झंगोरे की खीर, लेंगडे़ की सब्जी, चैसा, कापला, घेन्जें व खुल्य की पकोड़ी बनाते थे जिसकों बनाने से कम से कम 95 प्रतिशत मुनाफा पिताजीे को जाता था, पांच प्रतिशत जो जाता था वह सिर्फ नमक, मसाले व तेल का पैसा बहार जाता था। सीधे शब्दो में कहे तो अपनी खेती में उगने वाली फसल व प्राकृतिक रूप से उगने वाले साग में जितनी पौष्टिकता थी उतना ही व्यापारिक रूप से मूनाफा भी था। जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगने वाली सब्जी को बीन कर लाने वाले पशुपालको को भी पैसा मिल जाता था।

मेले थोलों में गढ़भोज की शुरूआत- शुरूआती दौर में हमने वर्ष 2000-2001 में उतरकाशी के पौराणिक मेले में परंपरागत भोजन की स्टाल लगाई जिससे हमें अलग अलग क्षेत्रों में बनने वाले परंपरागत पकवानों के बारे में जानकारी जुटाने की सीख मिली जो हमारा शुरूआती दौर का काम था। साथ ही हमने परंपरागत भोजन को प्रोत्साहित करने के लिये स्वैच्छिक संगठनों व स्वयं सहायता समूह के सदस्यों से बातचीत की कि वे जब भी किसी स्थानीय मेलों में स्टाल लगाये तो परंपरागत भोजन की स्टाल लगाये। जिस पर साथीयों का सहयोग मिलना शुरू हुआ। देखते देखते अगले वर्षो में अड़से, स्वालों व दाल की पकोड़ी की स्टाल पूरे राज्य में होने वाले मेलें थोलों में लगनी लगी।

गढभोज नाम – देश के सभी राज्यों के भोजन की अपनी विशिष्ट पहचान है चाहे गुजराती हो य दक्षिण भारतीय भोजन हो। उतराखण्ड के भोजन को भी पहाड़ी भोजन के नाम से पुकारा जाता था पर पहाड़ तो हिमाचल भी है इसको लेकर हमने गढवाल, कुमाउ और जौनसार के साथीयों के साथ मिलकर एक संयुक्त नाम प्रचलन में लाने के लिये आपसी सहमती पर उतराखण्ड के परंपरागत भोजन की श्रृंखला को गढभोज नाम दिया। वर्ष 2008 के बाद से उतराखण्ड में परंपरागत भोजन को गढभोज के नाम से जाना जाने लगा। फिर अभियान को भी गढभोज अभियान के रूप दिया गया।

स्थानीयकरण – इसके लिये सबसे ज्यादा जरूरी था कि स्थानीय लोगो को मोटे अनाजों से बनने वाले परंपरागत भोजन में पाये जाने वाले औषधीय गुणों के बारे में बताना और इसकी ताकत को समझाना, उनके मन मष्तिष्क से मोटे अनाजों से बनने वाले भोजन और तथाकतिथ आधुनिक भोजन के बीच बनी खाई को पाटना। ये ऐसा दौर था जब गेहूॅ, चावल खाने वाले को अमीर और मोटा अनाज खाने व उगाने वाले को पिछड़ा समझा जाता था। लोगो ने मोटे अनाजों को खाने के साथ उगाना भी कम कर दिया था। ओमेगा 3 से भरपूर काले भटट का उपयोग सिर्फ गाय भैंस के पिण्डे के प्रयोग में किया जाता था। कई सारे लोगो में भ्रांती थी कि कोदे की रोटी खाओगे तो काले हो जाओगे। सबसे पहले स्थानीय स्तर पर गढ़भोज की स्वीकार्यता के लिये कई स्तर पर कार्य किया गया जिसका विवरण निम्न प्रकार है।

गढभोज जन संवाद यात्रा – उतराखण्ड के विभिन्न शहरों, कस्बों व गांव में शिक्षको, होटल, रेस्टोरेंट, ट्रेकिंग गाईड़िग से जुड़े लोगो, भोजन के कारोबार से जुड़े लोगो, गैर-सरकारी संगठनों एवं महिला स्वयं सहायता समूह के साथ लगातार वर्ष 2005, 09, 10, 11, 15,16 में परंपरागत भोजन गढभोज को प्रोत्साहित करने के लिये 1550 शहरों, कस्बों के दो लाख से अधिक लोगो के साथ गढभोज संवाद स्थापित किया गया।

सरकारी आयोजनों में गढ़भोज की पैरवी- जनपद स्तर पर होने वाली बैठकों, प्रशिक्षणों जिनमें नास्ता एवं दिन के भोजन की व्यवस्था रहती है उनमें अनिवार्य रूप से गढभोज को परोसने के लिये जिला प्रशासन उतरकाशी के साथ विभिन्न विभागों द्वारा आयोजित किये जाने वाले आयोजन जैसे किसान मेला, विकास मेला आदि में भी अनिवार्य रूप से गढभोज को प्राथमिकता देने के लिये पैरवी की गई जिसके परिणाम स्वरूप जिला प्रशासन उतरकाशी द्वारा बाकायदा सभी विभागों को प्रशिक्षण, बैठको एवं सरकार द्वारा आयोजित किये जाने वाले विभिन्न तरह के विकास मेलों में आवश्यक रूप से गढभोज परोसने के लिये आदेश भी जारी किये गये। इसके बाद यह सिलसिला राज्य स्तर पर शुरू हुआ।
हमारे द्वारा स्थानीय स्तर पर सरकारी एवं गैर-सरकारी बैठको, प्रशिक्षणों में गढ़भोज की डिमांड लेकर महिलाओं को अच्छा मुनाफ उपलब्ध करवाकर उनको गढभोज के व्यापार के लिये मानसिक व आर्थिक रूप से मजबूत किया गया। शुरू शुरू में जाड़ी संस्थान की टीम स्वयं सहायता समूह के साथ भोजन परोसने, बिल बनाने, कच्चे सामान की खरीद के लिये सहयोग करती रही। हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान “जाड़ी” द्वारा जनपद उतरकाशी में गढभोज परोसने के लिये स्वयं सहायता समूह का गठन किया गया। गठन के साथ उनको जरूरी बर्तन, स्थान की व्यवस्था की गई। जब समूह बेहतर काम करने लगा तो उनको इंदरा अम्मा कैंटीन भी दिलाई गई।
 मिड डे मील योजना में प्रयोग के तौर पर गढ़भोज – वर्ष 2018 से हमने राज्य में राजकीय इंटर कालेज डागर पिपलीधार टिहरी गढवाल, राजकीय बालिका इंटर कालेज डुण्डा, राजकीय इंटर कालेज श्रीकालखाल, राजकीय इंटर कालेज गालूड़धार सहित एक दर्जन से अधिक विधालयों के शिक्षको के साथ मिल कर स्वैच्छिक रूप से मिड डे मील योजना में गढभोज को शामिल करने का प्रयास किया। जिसके बेहतर परिणाम देखने को मिले। इसके साथ ही स्कूलों की प्रार्थना सभा में आज के विचार के साथ प्रत्येक दिन लगभग पन्द्रह से अधिक स्कूल, कालेज के शिक्षकों के द्वारा बच्चों को एक पारंपरिक फसल के बारे में बताने का प्रयास शुरू किया गया जिसके परिणाम स्वरूप बच्चों के द्वारा घर में माता पिता को फसल के औषधीय गुणों के बारे में हुई चर्चा से घर वाले भी परंपरागत फसलों व भोजन में पाये जाने वाले औषधीय गुणों से रूबरू हुये। साथ ही राज्य के लगभग सो से अधिक स्कूल ऐसे रहे जिन्होनें विभिन्न आयोजनों के अवसर पर गढ़भोज को परोस कर अभियान को सहयोग किया।

 स्कूलों में गृह विज्ञान की प्रयोगात्मक परीक्षा में गढ़भोज – वर्ष 2019 से स्कूलों में गृह विज्ञान की प्रयोगात्मक परीक्षा में प्रयोग के तौर पर राजकीय इंटर कालेज रोंन्तल उतरकाशी, राजकीय इंटर कालेज डागर पिपलीधार कृतिनगर टिहरी गढवाल, राजकीय बालिका इंटर कालेज डुण्डा, राजकीय इंटर कालेज श्रीकालखाल, राजकीय इंटर कालेज गालूड़धार, सहित राज्य के 14 विद्यालयो में 9वी और 11वी की गृह विज्ञान की प्रयोगात्मक परीक्षा में गढभोज को शामिल करने का सफल प्रयोग किया गया। विद्यालयो में गृह विज्ञान की प्रयोगात्मक परीक्षा में प्राकृतिक रूप से उगने वाले सागो, पारंपरिक फसलो से बनने वाले भोजन की जानकारी जुटाने व उसे प्रस्तुत करने का टास्क बच्चों को दिया गया। जिसको बच्चों ने विभिन्न पकवानों को बनाकर भोजन में पाये जाने वाले पोषक तत्वों के बारे में बेहतरीन जानकारी प्रस्तुत की गई। स्कूलों के अध्यापकों के मार्गदर्शन में छात्र-छात्राओं के द्वारा विभिन्न क्रियाकलाप के अन्तर्गत परंपरगत फसलों की जानकारी देने के साथ उनके औषधीय गुणों के बारे में चार्ट बनाकर जानकारी दी गई। इन आयोजनों के अवसर पर स्वाले, चैसा, झगोंरे की खीर, मंडूये की रोटी, कददू का रायता, कण्डाली का कापला व अमेड़ा की चटनी बनाई गई। स्कूल और छात्रों के लिये ये एक नया अनुभव रहा।

ऽ शादी विवाह में गढ़भोज- हमारे द्वारा भोजन करोबार से जुड़े लोगो को शादी विवाह व अन्य आयोजनों में अपने मेन्यू में गढ़भोज को शामिल करने की बात की गई। लगभग 100 से अधिक परिवारों से संपर्क किया गया जिनके घर में बेटी य बेटे की शादी थी उनको शादी में गढभोज को शामिल करने के लिये प्रेरित किया गया। गढभोज अब उतराखण्डीयों की शादी विवाह का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।

ऽ चारधाम यात्रा मार्ग पर गढभोज – वर्ष 2009 में पहली बार गंगोत्री, यमुनौत्री, बदरीनाथ एवं केदारनाथ मार्ग पर स्थित 5-5 ढाबों में अन्य भोजन के साथ गढभोज को शामिल करने का प्रयास किया गया। जिसके बेहतर परिणाम देखने को मिले। ढाबा स्वामियों के अनुसार अन्य भोजन की अपेक्षा गढभोज के बारे में समझाने के लिये अतिरिक्त प्रयास करने पड़े। इसके साथ ही राज्य के सभी छोटे बडे़ होटलो, रेस्टोरेंट के मेन्यू में गढभोज को शामिल करने की बात की गई। लोगो ने इसे सहस्र स्वीकृति दी।

ऽ उतराखण्ड पुलिस की कैंटीनो में गढभोज – वर्ष 2019 से हमने उतराखण्ड पुलिस से उनकी राज्य में स्थित समस्त कैंटीनो व मेस में सप्ताह के एक दिन गढभोज को अनिवार्य रूप से शामिल करने की पैरवी की। तत्कालीन उतराखण्ड पुलिस महानिदेशक श्री अनिल रतुड़ी ने सैदान्तिक स्वीकृति प्रदान की जिसे कार्य रूप में वर्तमान पुलिस महानिदेशक श्री अशोक कुमार ने उतारा। वर्तमान में राज्य की लगभग तीन सो पचास से अधिक मेस एवं कैंटीनो में सप्ताह के एक दिन गढभोज परोसा जा रहा है।

ऽ मोटे अनाजों के लिये बाजार व्यवस्था- धीरे धीरे गढ़भोज लोगो की जुबान व थाली में अपना स्थान बना रहा था। खासकर उतरकाशी और देहरादून में लोग पूछते थे कि हम गढभोज घर पर बनाना चाहते है परन्तु हमें कच्चा सामान जैसे मडु़वा, झंगोरा व कंडाली आदि समय व आसानी से नही मिल पाते है जिसे प्राप्त करना बड़ा कठिन है और अगर कही मिलता भी है तो काफी उचें दामों पर मिलता है। वही किसानों से औने पौने दामों पर कृषि उत्पाद खरीद कर बिचैलिया कई अधिक दाम पर बाजार में ग्रहकों को बेचते थे। जिसका बुरा असर किसान और उपभोक्ता दोनो पर पड़ रहा था। परंपरागत उत्पाद उपभोक्ता को आसानी से मिले व किसानों को उनकी लागत का वाजीब दाम मिले इसके लिये संस्थान द्वारा वर्ष 2014 में गांधी जयंती के अवसर पर उतरकाशी व देहरादून में गढबाजार की शुरूआत की। जिसके माध्यम से मोटे अनाजों को बाजार मिलता गया। गढबाजार में मोटे अनाजों के साथ अन्य परंपरगत फसलों, दाल, सब्जी आदि को भी शामिल किया गया। गढबाजार से लगभग पांच हजार किसान जुडे़ है। गढ बाजार से प्रेरित होकर कई सारे युवा मोटे अनाजों व अन्य पहाड़ी उत्पाद को बाजार से जोड़कर अपनी आजीविका चला रहे है। जैसे जैसे अन्य लोग प्रेरित होकर इसे व्यवसाय के रूप में अपनाने लगे हमने फिर पैरवी की तरफ ध्यान देना शुरू किया।

 सर्वव्यापीकरण- गढभोज को राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर पहचान व बाजार दिलाने के लिये उतराखण्ड सरकार से सप्ताह के एक दिन मिड डे मील में शामिल करने के साथ सरकार की विभिन्न राज्यों में स्थित उतराखण्ड भवन, गढवाल एवं कुमाउं मंडल विकास निगम की कैंटीनो, पुलिस की राज्य भर में स्थित मेस व कैंटीनों एवं समस्त सरकारी कैंटीनो में गढभोज को शामिल करने की पैरवी की गई।
ऽ गढ़भोज वर्ष 2021- गढभोज अभियान के 20 वर्ष पूर्ण के अवसर पर वर्ष 2021 को गढभोज वर्ष के रूप में मनाया गया। जिसे पूरे राज्य के शिक्षकों, भोजन के कारोबार से जुडे़ कारोबारीयों व स्वैच्छिक संगठनों के द्वारा व्यापक रूप से मनाया गया। गढभोज वर्ष 2021 का शुभारंभ देहरादून के राजपूर रोड़ स्थित राजकीय बालिका इंटर कालेज में 15 जनवरी को किया गया। कार्यक्रम में प्रदेश के तत्कालीन उच्च शिक्ष मंत्री डा. धन सिंह रावत, तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्री प्रेमचन्द अग्रवाल, डीजीपी श्री अशोक कुमार एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री डा. मोहन सिंह रावत गाॅववासी सहित राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से आये शिक्षको व छात्रों ने भाग लिया। गढभोज वर्ष के अवसर पर पुलिस महानिदेशक श्री अशोक कुमार के द्वारा पुलिस की राज्य में स्थित लगभग तीन सो पचास कैंटिनो व मेस में सप्ताह के एक दिन गढभोज को शामिल करने की घोषणा की गई जिसके क्रियान्वयन के लिये 16 जनवरी 2021 को आदेश जारी किया गया।
गढभोज वर्ष 2021 के अवसर पर वर्ष भर विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किये गये। इन आयोजनों में विभिन्न स्थानों पर राज्य व राज्य से बाहर लगभग एक लाख पचास हजार से अधिक छात्रों, ग्राम पंचायतों, किसानों, शिक्षकों, महिला मंगल दल, स्वयं सहायता समूह की सदस्या, रेस्टोरेंट, भोजन कारोबारीयों, स्वैच्छिक संगठनों, विश्वविधालयों के प्रोफेसर व छात्रों आदि की भागीदारी गढभोज अभियान में रही।

ऽ नव निर्वाचित विधानसभा सदस्यों से गढभोज संवाद – वर्ष 2022 में उतराखण्ड के नवनिर्वाचित विधानसभा सदस्यों को गढभोज को मिड डे मील में शामिल करने के समर्थन को लेकर मुलाकात कर प्रस्ताव दिये गया।

ऽ गढभोज दिवस – हम सब का दायित्व बनता है कि उतराखण्ड की भोजन संस्कृति, विरासत को ज्यादा से ज्यादा लोग जाने व वर्ष भर में एक ऐसा दिन हो जो परंपरागत मोटे अनाजों व भोजन गढभोज को समर्पित हो। इसी क्रम में गढभोज दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। का आयोजन किया गया। प्रथम गढ़भोज दिवस का शुभारंभ उतराखण्ड सरकार के शिक्षा मंत्री डा0 धन सिंह रावत के द्वारा नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आवसीय छात्रावास बनियावाला देहरादून में 7 अक्टूबर 2022 को किया गया। अक्टूबर का महिना गढ़भोज दिवस के लिये और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अक्टूबर माह में परंपरागत मोटे अनाज पक कर तैयार हो जाते है। इसी माह अनाज खेत से कोठर भंकार में पहुचता है। प्रथम गढभोज दिवस गढभोज अभियान और उतराखण्ड के लिये इस लिये भी हमेशा याद रहेगा कि आज के दिन ही उतराखण्ड सरकार के कैबिनेट मंत्री डा. धन सिंह के द्वारा मिड डे मील में गढभोज को शामिल करने की हमारी मांग को स्वीकार किया गया। इस अवसर पर हमारे द्वारा उतराखण्ड के पांपरागत अनाजों, फसलों, कंद, मूल, फल व सागों पर लिखी पुस्तक गढभोज का विमोचन किया गया।

गढभोज अभियान का असर
 मिड डे मील में राज्य के समस्त स्कूलों में सप्ताह के एक दिन उतराखण्ड सरकार द्वारा शामिल किया गया गढभोजेेे
 गढभोज को सप्ताह के एक दिन आवश्यक रूप से शामिल करने के लिये सरकार द्वारा सभी विद्यालयों को आदेश जारी किया गया है।
 स्कूली शिक्षा जैसे प्रयोगात्मक परीक्षा, प्रार्थना सभा में गढभोज को जोड़ने के लिये सरकार द्वारा जारी किया गया आदेश।
 वर्ष 2020-2021 से उतराखण्ड पुलिस की राज्य में स्थित चार सो से अधिक कैंटीनो व मेंस में सप्ताह के एक दिन शुरू हुआ गढभोज।
 राज्य से बहार स्थित उतराखण्ड भवन के मेन्यू में शामिल हुआ गढभोज। उतराखण्ड भवन मुंबई में सप्ताह के दो दिन परोसा जाता है गढ़भोज।
 सरकारी परियोजनाओं के द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूह के द्वारा राज्य व राज्य के बहार लगने वाले मेलों व प्रदर्शनीयो में अनिवार्य रूप से गढभोज की स्टाल लगाई जाती है।

खेती पर असर
 मिड डे मील में शामिल करते ही सरकार ने मिड डे मील के लिये 9600 मीट्रिक टन मंडुवा की खरीद का आदेश जारी किया है जिससे लगभग 45 करोड़ रूपये किसानों के पास जा रहा है।
 जिस मंडुवा की किमत 10 से 15 रूपये प्रति किलो के हिसाब से भी नही मिल पाता था आज उसका प्रति किलो 35 रूपये के हिसाब से सरकार दे रही है। उतराखण्ड की पहली फसल है जिसकी एक साथ इतनी खरीद की जा रही है। साथ इतनी बड़ी मात्रा में समर्थन मूल्य पहली बार किसी फसल को मिल रहा है।
 गढभोज अभियान के प्रभाव से आज पारंपरिक फसलों के उत्पादन बढाने के लिये सरकार द्वारा बेहतर प्रयास किये जा रहे है।

आम जनमानस पर प्रभाव
 शुरूआती दौर में बहुत सारे लोग मजाक उड़ाते थे कहते थे कि पिज्जा के जामाने उतराखण्ड के ठेठ मोटा अनाज से बने भोजन की बात करते हो।
 अभियान के बाद लोग जिस भोजन से बचते थे वह आज आम और खास उतराखण्डीयों का सिंबल बन चुका है।
 उतराखण्ड निवासियों के विवाह व अन्य मांगलिक आयोजन का अभिन्न हिस्सा बन गढभोज।
यात्रा मार्गो पर गढ़भोज की उपलब्धता – हम ने गढभोज को व्यवसायिक रूप देने के लिए पहले सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं की बैठक, प्रशिक्षण व मेलो में गढभोज परोसने की कोशिश की जिससे होने वाली अच्छी खासी कमाई के साथ गढभोज प्रचलन में आया। कुमाउ की बात करे तो कई सारे पहाड़ी स्टेशन है जह पर आप गढभोज का आनन्द ले सकते है-

कुमाउं
 बागेश्वर से रानीखेत जाते समय लोद नामक स्थान पर रमोला बंधुओ के द्वारा सुन्दर गढभोज परोसा जाता है। वह पर गरमा गर्म डुबके भात का आनन्द ले सकते है।
 बागेश्वर से पिथौरागढ मार्ग पर आप छाती मनकोट स्थान पर भटट बंधु गढभोज परोसते है।
 अल्मोड़ा से पिथौरागढ मार्ग पर पड़ने वाले दनिया एवं घाट पनास पर एवं बनबसा से पिथौरागढ जाने वाले लोग गुरूना मंदिर में गढभोज का आनंद लेते है।
 बेरीनाग से अल्मोड़ा मुनस्यारी पर धोलसिना व सेराघाट में कसेरा में बनी दाल व तांबे के तोल पर बना भात परोसा जाता है।
 देहरादून – देहरादून में कपिल डोभाल बूढदादी में डिड़के, अस्के, बाडील व घेन्जें परोसते है। थानों रोड़ में स्थित कंडाली कैफे, रिस्पना स्थित जेएसआर कंाटिनेटल एवं जोलीग्राट में याथर्थ रेस्टोरेंट सहित दर्जनों होटल, रेस्टोरेंट में अब सामान्य रूप से गढभोज उपलब्ध है। राज्य में गढवाल मंडल विकास निगम एवं कुमाउ मंडल विकास निगम के रेस्टोरेंट में आर्डर देने पर गढभोज उपलब्ध हो जाता है।
 पौड़ी बस अडडे में चैसा भात आसानी से मिल जाता है।
 उतरकाशी में गढभोज के साथ ही भैरव चोक में मंडुवे के मोमो । मंगसीर बग्वाल में गढभोज के साथ स्थानीय मख्खन की धूम रहती है। शहर के मोनाल होटल, शिवलिंगा रिर्सोज के साथ गोविंद पैलेस रेस्टोरेंट सहित दर्जनों स्थान पर गढभोज मिलता है।
 ऋषिकेश से उतरकाशी जाते समय खाड़ी नामक स्थान पर समूण जिसे अरण्य रंजन जी संचालित करते है वहा पर नये लुक में गढभोज परोसा जाता है।
 जनपद उतरकाशी में छानी स्टे, होम स्टे व विभिन्न रिजार्टो में अब आर्डर पर गढ़भोज मिल जाता है।

गढभोज अभियान कुछ विशेष- गढभोज अभियान दुनिया का एक मात्र ऐसा अभियान है जो फसलों व भोजन को पहचान व बाजार दिलाने के लिये चलाया जा रहा है। नई पीड़ी को अपनी विरासत से रूबरू कराने व जड़ो से जोड़ने के लिये चलाया जा रहा है। जो आज देश के सफल अभियानों में से एक है।

मेरा गढभोज अभियान के शुरूआती दौर से ही मानना रहा कि हम भोजन को पहचान, बाजार दिलाने, अपनी विरासत को भूल चुके लोगों को उससे रूबरू करवा कर गढ़भोज को थाली का हिस्सा बनाने के लिये काम करेंगे न कि किसी प्रकार के पेटेंट य रायल्टी के लिये। जिस तरह साउथ इडिंया एवं गुजरात के लोग अपने भोजन पर गर्व करते है ठीक वैसे ही अपने उतराखण्डी भी करें , ठीक वैसे ही परोसें व अपने व्यापार का हिस्सा बनाये।
द्वारिका प्रसाद सेमवाल

समय समय पर बदलती रही गढ़भोज अभियान की रणनीति
सामाजिक जीवन के शुरूआती दौर में हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान जाड़ी के द्वारा सर्व प्रथम कार्य जिसे अभियान के रूप में शुरू किया गया आज अपने उददेश्य की पूर्ति के साथ सफल होने पर काफी प्रश्न्नता हो रही है। शुरूआती दौर में जब हम लोग अभियान चला रहे थे तब कई बार लगता था कि कही हम हारी हुई लड़ाई तो नही लड़ रहे है। उसके बावजूद हम नित नयें प्रयोग और बातें करते थे जैसे पहले पहले मेले थोलों में कंडाली का साग और भात परोसते थे और अन्य लोगो को भी प्रेरित करते थे, जैसे ही कई लोग इससे जुडे़ और मेले थोलांे में व्यवसायिक रूप से आगे बढाने लगे तो हमने प्रशसन एवं गैर-सरकारी संगठनों से बैठकों व अन्य आयोजनों में आवश्यक रूप से गढभोज को परोसने की पैरवी शुरू की लगातार प्रयास करने से सरकारी बैठको व प्रशिक्षण में भी गढभोज परोसना शुरू हुआ। भोजन परोसने के लिये आदि भोग समूह व अन्य विभागो के द्वारा गठित समूह को प्रश्क्षिित कर उनको जरूरी मदद की गई। विभिन्न स्थानों पर विभिन्न समूह को गढभोज की डिमांड दिलाने के लिए भरसक प्रयास किये गये। महिलाए बैठको में भोजन परोसते हुए शर्माए न एवं उनके मन में कांई हीन भावना न आये उसके लिए खुद ही महिलाओं के साथ भोजन परोसने में सहयोग करते रहे य यू कहे की वेटर का काम । जब मैं खुद महिलाओं के साथ जूठी पतल, प्लेट उठाता तो जाड़ी संस्थान के कार्यकर्ता भी काम पे लग जाते थे। एक बार तो उतरकाशी के कलक्टेªट में एक प्रशिक्षण के दौरान तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर श्री हरगिरी पकोड़ी बनाने के कार्य में लग गये जिसका महिलाओं पर काफी अच्छा प्रभाव हुआ। महिलाओं को लगा कि जब डिप्टी कलेक्टर गढभोज बनाने में सहयोग के लिये आये तो फिर हमें करना चाहिये। यही सिलसिला राज्य भर में चलता रहा। इसके बाद हमने उतराखण्ड पुलिस से अपनी समस्त कैंटीनो, मेस में सप्ताह के एक दिन गढभोज को शामिल करने का प्रयास किया जिसमें सफलता मिली। साथ ही साथ मिड डे मील में शामिल करने की पैरवी की जिसके सफल परिणम 2022 में सामने आये।

सफल केस स्टडी
पवित्रा देवी
ग्राम- रैथल, विकासखण्ड-भटवाड़ी, उतरकाशी
पवित्रा देवी 51 वर्षीय पवित्रा देवी ग्राम रैथल विकास खण्ड भटवाड़ी की निवासी है। इनके पति की मृत्यू काफी पहले हो गई थी। इनके दो बेटे व दो बेटी है। खेती बाड़ी करके अपने परिवार का भरण पोषण करती है। वर्ष 2014 से पहले बिचैलियों के माध्यम से अपनी खेती की उपज बेचती थी जिसका उनको उचित दाम नही मिल पाता था। 2014 में जाड़ी संस्थान के द्वारा इनको गढ़भोज परोसने वाले समूह व गढ़बाजार से जोड़ा गया। पवित्रा देवी ने गढबाजार में सोयबीन, गहत, मंडुवा व साग सब्जी बेचकर 87000 हजार रूपये कमाये। इस कमाई से उन्होनें गैस, कनेक्सन व शैचालय का निर्माण किया। अब बराबर मोटेअनाज को उगा कर अच्छी कमाई कर रही है।
संजय पवार उतरकाशी
उतरकाशी के संजय पवार कैटीन व ट्रेकिंग का काम करते है। वर्ष 2010 में गढभोज अभियान से पे्ररित होकर कैटीन में अन्य भोजन के साथ गढभोज परोसने का काम शुरू कर प्रतिवर्ष 40 से 50 हजार रूपये अतिरिक्त कमाते है। वर्ष 2019 में कोविड-19 के दौरान जनपद अस्पताल उतरकाशी में क्वारइंटीन लोगो को व कैंटीन में गढभोज परोस कर लगभग तीन लाख पचास हजार रूपये कमाये। इस कमाई से संजय ने गाडी खरीद कर मोटा अनाज व गढभोज को बैठकों में सप्लाई करने का कार्य शुरू किया।
रामेश्वर सिंह उतरकाशी
रामेश्वर सिंह जनपद उतरकाशी के निवासी है। रामेश्वर जनपद मुख्यालय उतरकाशी में किराया पर ढाबा चलाते थे। वर्ष 2012 में जनपद में आई विनाशकारी आपदा के दौरान सभी का व्यापार लगभग बैठ गया था। इस दौरान स्वैच्छिक संगठन कासा के द्वारा राजकीय इंटर कालेज उतरकाशी में आपदा प्रभावितों के लिये एक माह तक लंगर लगाई गई जिसमें प्रति दिन सैकड़ो लोग खाना खाते थे उस दौरान लंगर में गढभोज परोसा गया। रामेश्वर ने गढभोज परोस कर लगभग दो लाख रूपये कमाये। रामश्वर कहते है की गढभोज परोसने से उसका ढाबा बन्द होने से बचा व उसने ढाबे की अन्य देनदारी चुकाई।
आदि भोग स्वयं सहायता समूह लदाड़ी
वर्ष 2014 में पहली बार जनपद उतरकाशी में जिला प्रशासन ने अनिवार्य रूप से सरकारी विभागों की बैठको व प्रशिक्षणों में गढभोज को शामिल किया। जाड़ी संस्थान के द्वारा पूर्व में गठित आदि भोग स्वयं सहयता समूह को सरकारी विभागों में गढभोज परोसने का जिम्मा दिया। समूह के द्वारा 2014 से प्रतिवर्ष तीन से चार लाख रूपये का गढभोज बैठकों में परोसा गया। इस समूह के द्वारा सप्ताह के एक दिन लगने वाले गढबाजार में सब्जी सहित मोटा अनाज की बिक्री की गई। समूह के द्वारा बेहतरीन कार्य करने पर जिला प्रशासन द्वारा इन्दरा अम्मा कैटीन संचालित करने का भी जिम्मा दिया गया। समूह में कुल 8 महिला सदस्य शामिल है। समूह की सदस्य प्रति माह 5 से 7 हजार रूपये गढभोज परोसने से कमाती है। समूह की सदस्य का नाम श्रीमती भूमी कलूड़ा है। समूह की सदस्य इस कमाई को अपने बच्चों की पढाई में खर्च करती है।
मांउटेन फूड कनेक्ट टिहरी
श्री अरंण्य रंजन एक सामाजिक कार्यकर्ता है। हमने उतराखण्ड में कई विभिन्न सामाजिक एवं पर्यावरणीय आन्दोलन में सक्रिया भागीदारी निभाई। अभी भी कई सामुहिक मुददो पर साथ काम करते है। गढ़भोज अभियान से प्रेरित होकर उन्होनें ऋषिकेश उतरकाशी मोटर मार्ग पर स्थित खाड़ी कस्बे में वर्ष 2019 में परंपरागत भोजन को स्थानीय व तीर्थ यात्रियों को उपलब्ध करवाने के लिये मांउटेन फूड कनेक्ट रेस्टोरेंट खोला। परंपरागत भोजन को आधुनिक तौर तरिके से परोसने का नयाब नमूना पेश किया। मांउटेन फूड कनेक्ट में सात स्थानीय महिला व पुरूषों को रोजगार मिलता है। सात लोगो को रोजगार देने के साथ खुद अरंण्य रंजन महिने के पच्चीस हजार रूपये कमाते है।
गढभोज परोसने पर मिली सरकारी नौकरी
देव सिंह पवार जनपद उतरकाशी के निवासी है। देहरादून में रहकर गढबाजार के साथ मेलों थोलों में गढभोज की स्टाल लगाकर अपनी आजीविका चलाते थे। देव सिंह पहले पंजाब में होटल में नौकरी करते थे। फेसबुक पर गढभोज अभियान व गढबाजार के बारे में जानकारी मिली। बस उसके बाद पंजाब से नौकरी छोड़कर देहरादून आ कर गढभोज अभियान से जुड़कर गढभोज परोसने के कार्य में लग गये। जाड़ी संस्थान के द्वारा जनपद उतरकाशी में सप्ताह के एक दिन उतरकाशी व स्थाई रूप से देहरादून में गढबाजार के माध्यम से मोटा अनाजों को बाजार उपलब्ध करने का कार्य किया जाता है। जिसका मुख्य उददेश्य मोटे अनाजों के साथ अन्य उपज को बाजार व वाजीब दाम दिलाना है। देव सिंह व उसके छोटे भाई टीकाराम पंवार दोनों गढबाजार व गढभोज अभियान से जुडे़। गढभोज परोसने से दोनो भाई महिने के 80 से 90 हजार कमा लेते थे। एक बार ऋषिकेश में एक आयोजन में गढभोज की स्टाल लगी थी सिसमें मुख्य अतिथि के रूप में आये तत्कालीन मुख्समंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को देव सिंह के द्वारा गढभोज परोसा गया। मुख्यमंत्री को गढभोज इतना पंसद आया कि उन्होनें तत्काल देव सिंह को मुख्यमंत्री आवास में गढभोज बनाने के लिये अमांत्रित किया। आज देव सिंह स्थाई रूप से मुख्यमंत्री आवास में आने वाले अतिथितीयों को गढभोज परोसते है।

अशोक कुमार प्च्ै
पुलिस महानिदेशक उतराखण्ड
स्थानीय भोजन को पहचान दिलाने के लिए वर्ष 2021 को गढ़भोज वर्ष के रूप में मनाने व जो नारा राज्य प्राप्ति आन्दोलन का सूत्र वाक्य “कोदा झंगोरा खायेंगे उतराखण्ड बनायेंगे” रहा, को साकार करने की मुहिम का हिस्सा बनना मेरे लिये गौरव की बात है। बड़ी प्रसन्नता का विषय है कि वर्ष 2000 में उतराखण्ड के परंपरागत भोजन को पहचान व आर्थिकी का जरिया बनाने के लिए शुरू हुई मुहिम गढ़भोज अभियान की पहल आज पूरे राज्य में विस्तार पा चुकी है। मैं हमेशा स्थानीय भोजन को बढ़ावा देने का पक्षधर रहा हूॅ। बात तब की है जब मैं पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था उतराखण्ड था, तब श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल उतराखण्ड के परंपरागत भोजन को उतराखण्ड पुलिस की समस्त कैंटीनो में सप्ताह के एक दिन आवश्यक रूप से शामिल करने का प्रस्ताव लेकर आये। स्थानीय फसलों का स्थानीय स्तर पर उपयोग के माध्यम से पारिस्थितिकी की पुनर्बहाली व परंपरागत भोजन को थाली का हिस्सा बनाने की मुहिम मुझे बेहद पंसद आयी। यह मुहिम स्थानीय किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य दिलाने के साथ-साथ उन्हें पारम्परिक एवं पौष्टिक अनाज की फसलों को उगाने के लिए प्रेरित कर रही है।
श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल की अनोखी पहल से प्रभावित होकर राज्य के भोजन को बढ़ावा देने के लिए गढ़भोज वर्ष 2021 के शुभारम्भ के अवसर पर हमने पूरे राज्य में स्थित पुलिस विभाग की समस्त मैस व कैण्टीनों में सप्ताह के एक दिन आवश्यक रूप से उतराखण्ड के परंपरागत भोजन गढ़भोज परोसना शुरू कर दिया है।
उतराखण्ड में गढ़भोज अभियान के तहत हमारे परंपरागत भोजन को मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयासों के लिए अभियान के प्रणेता श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल बधाई के पात्र है।

गढ़भोज अभियान के सहयोगियों के अनुभव
सुरक्षा रावत
कला शिक्षक
शहीद हमीर सिंह पोखरियाल राजकीय इण्टर कालेज श्रीकालखाल उतरकाशी
वर्ष 2021 को श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल के द्वारा गढभोज वर्ष के रूप में मनाने का आहवान हुआ, तो मन में आया कि अपने विधालय शहीद हमीर सिंह राजकीय इण्टर काॅलेज श्रीकालखाल उतरकाशी के मध्याहन भोजन योजना में क्यों न गढ़भोज की थाली परोसी जाये। करीब नौ वर्षो बाद पहली बार एमडीएम प्रभार मुझे मिला तो तय किया कि सप्ताह में दो दिन विधालय की रसोई में मोटे अनाजों से बनने वाले गढ़भोज के व्यंजन बनेंगे।
कोरोना महामारी के बाद जब विधालय खुले तो सबसे पहले एमडीएम कक्ष की सफाई-पुताई करवायी गई। सालों बाद यह काम हुआ। फिर हर कक्षा (6,7,8) से स्वेच्छा से आये नामों में से एमडीएम के विभिन्न कार्यो के प्रतिनिधि नियुक्त किये गये। इन्हें जिम्मेदारियां सौप दी गई। जैसे सफाई, बैठक व्यवस्था, पीने का पानी, खाद्यान की मात्रा छात्र-छात्राओं की उपस्थिति अनुसार, स्थानीय उत्पाद, दैनिक मीनू, घरेलू दाल, प्राकृतिक रूप से व घरों में उगने वाली सब्जी व लस्सी आदि की उपलब्धता एवं उसका नगद भुगतान आदि। हर रोज का मीनू पहले ही तय कर लिया जाता था। इस दौरान प्रार्थना सभा नहीं होनी थी, अतः बच्चे सुबह ही सारी व्यवस्थाएं पूरी कर मुझे सूचित करते और शेष कार्य हम मध्यांतर में सम्पन्न करते। मेरी देख रेख में सभी बच्चे खेल-खेल में खुशी-खुशी सारी जिम्मेदारियां निभाते हुए, रोज बहुत कुछ नया भी सीख रहे थे।
गढ़भोज थाली के रूप में चैंसा भाता, फाॅणु भात, कण्डाली, कददू का रायता-भात, दाल की बडी-भात, आलू की थिचवाड़ी-भात, कड़ी-भात, पहाड़ी राजमा भात आदि। पौष्टिक भोजन बच्चों को दिया जाता। आस-पास के गांवो से हमारे विधालय में पढ़ने वाले बच्चे स्थानीय दाल, सब्जी, दूध, लस्सी आदि शुद्व व पौष्टिक सामग्री लाते और बदले में उचित मूल्य भी पाते।
जब छुटटी में घर गया तो पत्नी बीना रावत से कुछ नये पकवान सीखकर आया, जिसमें बच्चों को सबसे ज्यादा सांभर पसंद आया। विधालय में जब भी मौका मिलता, बच्चों को उतराख्ण्ड के पारम्परिक भोजन, उसके उत्पाद, और महत्व के बारे जानकारी दी गयी। कई बार बच्चों से संवाद करते हुए, स्थानीय परिवेश के नजरिये से मेरी भी जानकारी बढने लगी।
विधालय में गढ़भोज की शुरूआत करने के लिए साथी द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने प्रेरित किया। उन्होंने विधालय में आकर बच्चों को गढ़भोज महत्त के बारे में विस्तार से बताया। इस अवसर पर श्री सेमवाल द्वारा भोजन माताओं श्रीमती फूलदेई, श्रीमती जोमाता देवी और बच्चों को उनके सराहनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
गढ़भोज अभियान के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल के साथ विधालय की प्रधानाचार्या रामपति देवी एवं शिक्षिका सुकर देई का विशेष सहयोग लगातार जारी है। दोनो भोजन माताओं और परिचारक राजेश लाल का ज्यादा आभारी इसलिए हूॅ कि दुर्गम के इस विधालय में पेयजल सुचारू रूप से नही आता है। ऐसे में इनका कार्य बढ़ जाता है। पीठ में पानी ढोकर ये भोजन माताएं भोजन को स्वादिष्ट बनाने में जुटी रहती हैं। इनकी रसोई में सिल बटटा भी मिलेगा, जिसका उपयोग दाल पीसने, चटनी, मसाले व पहाड़ी लूण आदि बनाने में किया जा रहा है।
बच्चों के सहयोग से कभी गांव के चूल्हें में भूनी दाल को ओखली में कूटकर एमडीएम में बनाया जाता है। आजकल स्थानीय उत्पाद, हरा साग और सप्ताह में एक दिन झंगोरे की खीर भी बच्चों को परोसी जा रही है। महिने में एक या दो बार विशेष भोज का आयोजन भी जारी है, जिसमें गढ़भोज को प्राथमिकता दी जाती है। हमारा गढ़भोज अभियान वोकल फाॅर लोकल के तहत आत्मनिर्भर भारत अभियान को आगे बढ़ाने में जरूर सहायक सिद्व होगा।

कृष्ण मोहन भटट
प्रवक्ता जीव विज्ञान
राजकीय बालिका इंटर कालेज डुण्डा उतरकाशी
मैं श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल जी को बचपन से जानता हूॅ, जो वर्तमान समय में हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान जाड़ी के सचिव है। इनके जीवन के संघर्ष को मैं भलिभांती जानता हूॅ श्री सेमवाल जी के साथ लम्बे समय से जुडे होने के कारण इनके कार्य ने मुझे बहुत प्रभावित किया जिसके परिणाम स्वरूप मै भी सामाजिक कार्य में प्रतिभाग करने लगा। श्री सेमवाल के द्वारा गढभोज अभियान शुरू किया गया था जो कि एक महत्वपूर्ण था जिसको शुरू में समझना एक पहेली जैसी थी, मै स्वयं में एक विज्ञान का छात्र था तो गढभोज का महत्व समझता था कि हमें निरोग रहने के लिये किन-किन भोज्य पदार्थो का उपयोग करना चाहिये और किन का नही, मै सामाजिक कार्य में रूचि रखता था जिसका मंच मुझे गढ़भोज अभियान में मिला। गढभोज अभियान चल ही रहा था कि अचानक विश्व एक भयानक महामारी कोविड 19 की चपेट में आ गया। तब विज्ञान के तथ्यनुसार हमें ऐसे भोज्य पदार्थ का उपयोग करने के लिये निर्देशित कर रहे थे कि जिनमें प्रचूर मात्रा में पोष्टिकता एवं रोगांे से लड़ने की क्षमता हो का ही उपयोग करे जो कि पहले से ही गढभोज अभियान के माध्यम से लोगो को जागरूक किया जा रहा था। परंपरागत भोजन गढभोज के उपयोग के परिणाम स्वरूप हमारे राज्य में कोविड में हुई कम जनहानी का आंकड़ा बताता है। अभियान की तरफ से स्कूल के बच्चों को जोड़ने की भी मुहिम चलाई गई। जिसमें मेरे द्वारा विधालय के छात्रों एवं विधालय परिवार के सभी सदस्य गणों को गढभोज के बारे में समय समय पर जानकारी देता रहा जिसके परिणाम स्वरूप विधालय की प्रधानाचार्या श्रीमती विजयलक्ष्मी रावत की अनुमति पर गृह विज्ञान की प्रवक्ता श्रीमति निशा थपलियाल द्वारा इण्टरमीडिएट प्रयोगात्मक परीक्षा में गढभोज को शामिल कर परीषदीय परीक्षा में नियुक्त परीक्षक को गढभोज थाली का भोजन करवाया गया। जिसपर परीक्षक द्वारा छात्राओं का मनोबल बढाया गया। साथ ही मै व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद देना चाहगा श्रीमती निशा थपजियाल एवं श्रीमती मनोरमा नौटियाल एवं मेरे सहपाठी श्री मनमोहन पडियार का जिनहोने समय-समय पर मेरे द्वारा आयोजित सभी कार्यक्रमों मे निरन्तर सहयोग रहा। गढभोज को प्रयोगात्मक परीक्षा मे शामिल करने वाला राजकीय बालिका इंटर कालेज पहला विधालय है। उपरोक्त अभियान से लोग अपनी जड़ो से जुडे़ लोगो ने मोटे अनाजों की महता को समझा। आज उतराखण्डी समाज पुनः परंपरगत फसलों का उत्पादन एवं संरक्षण करने लगे है। अभियान के प्रभाव से आज उतराखण्ड सरकार मडंुवे को 35 रूपये से अधिक दाम में खरीद रही है। जिसे फसलों के उत्पादन पर असर दिखेगा जो एक बड़ा रोजगार साबित होगा। मै श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल को धन्यवाद देना चाहता हूॅ जिन्होनें समय से उतराखण्ड के परंपरागत भोजन को मुख्यधारा से जोड़ने की मुहिम शुरू की । मै विधालय के समस्त अध्यापिकाओं, कर्मचारी गणों के साथ ही विधालय की छात्राओं को गढभोज अभियान को सफल बनाने के लिये हार्दिक धन्यवाद देता हू।

गोपाल प्रकाश मिश्रा
प्रवक्ता हिन्दी
राजकीय इंटर मीडिएट कालेज रोंतल गमरी उतरकाशी
मेरा सौभाग्य है कि मैं गढभोज अभियान टीम का अभिन्न अंग हूॅ। अभियान के प्रणेता श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल जिस लक्ष्य और दृढ विश्वास के साथ इस अभियान को आगे बढाया जो निश्चित रूप से काबिले तारीफ है। आज उतराखण्ड ही नही अपितु वैश्विक स्तर पर गढभोज को दिशा देने का कार्य जो जाड़ी संस्थान के द्वारा किया गया वह अदवितीय है और प्रशंसनीय है। मैं इस अभियान से छात्र जीवन से ही जुड़ा रहा हूॅ। शुरूआती दौर में अभियान अटपटा लगता था ये दौर वही था जब उतराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में भी चाउमीन, मोमो का प्रचलन जबरदस्त तरीके से अपना विस्तार कर रहा था। लम्बे समय तक अभियान से जुडे़ रहने के बाद मै सरकारी सेवा में आया। सरकारी सेवा में आते ही छात्र छात्राओं के साथ गढभोज व परंपरागत फसलों के बारे में चर्चा शुरू की। स्कूल में छात्र-छात्राओं को गढभोज की उपदेयता उसके महत्व के बारे में और उसके औषधीय गुणों के बारे में छात्र छात्राओं को निरंतर बताने का कार्य अपने स्तर पर करता रहा हूॅ। विगत वर्ष कोविड 19 के पश्चात विधालय स्तर पर गढभोज के आयोजन का लक्ष्य रखा गया था मुझे उत्सुकता थी की हम विधालय स्तर पर छात्रों को अपने परंपरागत भोजन गढभोज के विभिन्न व्यंजन उनके सामने परोस कर उनके स्वाद और महत्ता के बारे में बताए। कहा जाता है कि जब लक्ष्य मन में है दृढ इच्छाशक्ति हो तो निश्चित ह कार्य को हम ऐतिहासिक बना सकते है। फलस्वरूप विधालय स्तर पर छात्र-छात्राओं की गढभोज टीम तैयार की गई जिनको यह दयित्व दिया गया कि आप गांव से गढभोज बनाने के लिये प्रयुक्त सामग्री को लोगो से एकत्रित कर उनको बनाने का कार्य किया जायेगा तो बच्चों ने बडे़ उत्साह पूर्वक इस कार्य को अंजाम दिया। गृहविज्ञान की प्रयोगात्मक परीक्षा के दरमियान गढभोज को विधालय में शामिल किया। विधालय में पहली बार किये गये गढभोज के आयोजन के दौरान तीन सो से अधिक छात्र-छात्राओं ने गढभोज के व्यंजन का आंनद उठाया। इस अवसर पर अभियान के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल व जनपद के वरिष्ठ पत्रकार उपस्थित रहें। परीक्षा के दौरान स्कूली छात्रों ने परंपरागत फसलों व गढभोज की जानकारी को एकत्र कर चार्ट और पोस्टर के माध्यम से प्रदर्शित किये।

नरेश विजल्वाण
सहायक अध्यापक विज्ञान
राजकीय इंटर कालेज गालुड़धार टिहरी गढ़वाल
बडे़ हर्ष का विषय है कि मुख्यधारा से उतराखण्ड के परंपरागत भोजन गढभोज को जोड़ने का सपना श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल राज्य गठन के बाद से देख रहे थे उसे आज मुकाम पर पहुच गया है। मैं तब स्नातक की पढाई कर रहा था जब गढभोज अभियान से जुड़ गया था। मुझे बहुत अच्छे से आज वह दिन याद है जब श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल हमारे कालेज में गढभोज पर व्यख्यान देने आते थे। मोटा अनाज को खाने व उससे बने गढभोज के प्रचार प्रसार की बात करते थे तब बहुत सारे लोग मोटा अनाज की हंसी मजाक उड़ाते थे कई लोग सहयोग भी करते थे। मैं उसी दौरान गढभोज अभियान से प्रेरित होकर अभियान से जुड़ा और तमाम अभियानों से जुड़ता गया। वर्ष 2019 में सरकारी सेवा में विज्ञान शिक्षक के रूप में नियुक्ति मिली। अपने शिक्षक कार्य के साथ-साथ मै अपने विधालय में बच्चों को प्रार्थना सभा में भी समय-समय पर गढभोज व उनका हमारे लिये क्या महत्व है की जानकारी देना जारी रखा। गृह विज्ञान प्रयोगात्मक परीक्षा में हमारे विधालय में वर्ष 2021 से गढभोज बच्चों के द्वारा बनाया जा रहा। जिसमें मुख्यरूप से कोदे का केक बनाया गया। इसके साथ ही गहत की पुरी, कंडाली की कापली व लाल चावल का भात बनाया गया। प्रयोग के तौर पर सप्ताह के एक दिन गढभोज को शामिल किया गया। कोविड 19 के दौरान जब भी हम मास्क व
सेनेटाईजर बाटने जाते थे तो सभी लोगो को गढभोज को थाली का हिस्सा बनाने के लिये जागरूक करते थे। गढभोज वर्ष 2021 के अवसर पर हमने गांव के बच्चों के साथ मिलकर चालीस दिन तक गांव में प्रभात फेरी निकाली गई। जिसके बेहतर परिणाम देखने को मिले।

दिनेश सिंह रावत
प्रधानाध्यापक
राजकीय प्राथमिक विधालय मेतली, विकासखण्ड-धारचूला, पिथोरागढ़
माता पिता के साथ बच्चों को परंपरागत मोटे अनाज और उससे बनने वाले गढ़भोज के बारे में जागरूक कर गढ़भोज को थाली का हिस्सा बनाने के लिये हमारे द्वारा बच्चों को जागरूक करने के प्रयास किये गये। मैं पृथक राज्य आंदोलन का हिस्सा रहा तब अक्सर हम कोदा झंगोरा खायेंगे उतराखण्ड बनायेंगे का नारा लगाते थे उसको साकार करने के लिये चल रही मुहिम गढ़भोज अभियान का हिस्सा बनना मेरा सौभाग्य है।
कृष्णा बहुगुणा
राजकीय प्राथमिक विधालय कोल, विकासखण्ड- धौलादेवी, अल्मोड़ा
गढ़भोज अभियान से प्रेरित होकर मेरे द्वारा स्कूल में समय समय पर बच्चों को परंपरागत भोजन व प्राकृतिक रूप से उगने वाले कंद, मूल व फलों में पाये जाने वाले पोषक तत्वों की जानकारी दी गई। इस दौरान कुमाउं के सभी भोजन की जानकारी खुद को भी मिली। हम सप्ताह के एक दिन गांव में प्रभातफेरी निकालकर परंपरागत जैविक अनाजों के बारे में लोगो को जागरूक करने का प्रयास किये गये। मैं और मेरे साथी गांव में जाकर लोगो से गढ़भोज के बारे में चर्चा कर लोगो को मोटे अनाजों क्यों जरूरी है जैसे मुददे पर चर्चा कर उनको उनके परिवार में होने वाली शादी विवाह में गढभोज को शामिल करने के लिये दस परिवारों को तैयार किया। मैने अपनी शादी में गढ़भोज को परोस कर अपने अन्य साथियों को भी गढ़भोज के लिये प्रेरित किया। वर्ष 2015 में गांव में गढ़भोज अभियान के प्रणेता श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल को बुलाकर गढ़भोज जनसंवाद आयोजित किया।

राघवेन्द्र उनियाल
शिक्षक
राजकीय प्राथमिक विधालय ज्ञानसू पुराना उतरकाशी
उतराखण्ड राज्य निर्माण के पीछे भी हमारा मूल मंत्र यही था यहां के खान पान, रीति रिवाजों, परंपराओं को बढाया जाय एवं इनको संरक्षित कर विश्व पटल पर गढ भोज से लोगो से रूबरू करवाया जाय एवं जन जन को पौष्टिक एवं जैविक उत्पाद उपलब्ध करवायें जाये ताकी वह शुद्व भोजन प्राप्त करके शत वर्ष तक निरोगता के साथ जीवन जी सके। उतराखण्ड राज्य निर्माण का मूल नारा भी यही था “कोदा झंगोरा खायेंगे, उतराखण्ड बनायेंगे”।
अपनी संस्कृति, परंपराओं, रीति-रिवाज, खान-पान (गढभोज) के संरक्षण एवं संवर्धन का बीज हमें पैतृक रूप से प्राप्त हुआ। परिणाम स्वरूप मैं अपने सामाजिक, राजनैतिक एवं शासकीय जीवन में मैने अपने साथियों के साथ मिलकर विभिन्न अभियानों में मिलकर काम शुरू किया। इसमें मुख्य अभियान रहा गढभोज अभियान। वर्ष 2001 में मैने साथी द्वारिका प्रसाद सेमवाल के साथ गढभोज अभियान में सहयोग करना शुरू किया। जब मैने छात्र जीवन में छात्र संघ से राजनैतिक सफर की शुरूआत की तो चुनाव के दौरान ये तो सर्वविदित है कि चुनाव छोटे हो य बडे चुनाव के दौर में खाना पीना चिकन मटन सामन्य बात होती है पंरन्तु मेरे साथी व गढभोज अभियान के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल की प्रेरणा से चुनाव के दौरान परंपरागत भोजन बनाया गया साथ ही गांव में जब प्रचार प्रसार के दौरान जाते तो गांव से कुछ दाल, काले भटट , चावल भी मांग कर लाते थे जिसे गढभोज की पार्टी देने में प्रयोग करते थे। बस सारे चुनाव के दौरान जब भी साथी चुनाव प्रचार से आते तो सब चैसा भात से काम चलाते थे जिसकी उस दौरान खासी चर्चा हुई थी जो वोट में भी तब्दील हुई और मुझे बिना खर्च किये चुनाव में जीत दिलाई। मै अपने साथी द्वारिका प्रसाद सेमवाल, कृष्णा बहुगुणा, मुकेश पंवार, राजीव नयन बहुगुणा व योगेश गैरोला आदि मित्रों को धन्यवाद देता हूॅ।
सामाजिक जीवन में भी हमने गढभोज अभियान को निरंतर जारी रखा विभिन्न त्यौहारों एवं लोक पर्वो के अवसर पर गढभोज का आयोजन करते आ रहे है। उतरकाशी टिहरी में मुख्य दिवाली के बाद स्थानीय दिवाली मंगसीर बग्वाल मनाई जाती है। जिसमें हम लोग मुख्य रूप से गढभोज व गढ बाजार का आयोजन करते है।
राजकीय सेवा में आने पर द्वारिका सेमवाल गढभोज के लिये बराबर प्रेरित करते रहे। मैने यह यात्रा निरंतर यथावत जारी रखी। वर्ष 2021 में गढभोज वर्ष के अवसर पर बच्चों को सप्ताह के एक दिन मिड डे मील में गढभोज देने का प्रयास किया। राजकीय प्राथमिक विधालय पाही भटवाड़ी में विभिन्न समारोह में बेटी बचाओं, बेटी पढाओं कार्यक्रम के दिन विधालय प्रबंध समिति के साथ मिलकर समस्त ग्रामवासियों एवं आगन्तुकों हेतु विधालय में गढभोज का आयोजन किया गया। मैने गढभोज अभियान से प्रेरित होकर बहिन, भाई व खुद की शादी में भी गढभोज का आयोजन किया। आज बेहद खुशी हो रही है जब द्वारिका प्रसाद सेमवाल व साथियों का संघर्ष रंग लाया।

लोगो के विचार
प्रिय द्वारिका प्रसाद सेमवाल जी
सप्रेम बन्दों आपका 10.11.19 का कृपा पत्र मिला। आपका प्रयास सराहनीय है। इसके पीछे भारतीय संस्कृति का संदेश वसुधैव कुटुम्ब निहित है। हिमालय क्षेत्र में की जाने वाली परंपरागत बाराहनाजा फसलों व उससे बनने वाले परंपरागत भोजन को बढाव देने का आपका ऐतिहासिक कार्य जन-जन में जागृति पैदा करेगा और भारत भूमि आपके संदेश को नयें युग में मार्गदर्शक बनाने में सफल होगी। स्कूली बच्चें हमारे भविष्य है और वे भारत को गढभोज अभियान के माध्यम से उसके अतीत के साथ जोडे़गे जिसके भविष्य में सुखद परिणाम देखने को मिलेंगेे।
आधुनिक विकास के दौर में नदियों के साथ-साथ परंपरागत फसलों पर भी संकट बढ गया है। चंद रूपये कमाने के लिये जहां नगदी फसल उत्पादन का रकबा बढा वही परंपरागत फसलों की कई प्रजाती विलुप्ती की कगार पर पहुच गई है। ज्यादा उत्पादन और ज्यादा मुनाफे के लिये खेती को नशीला बनाया जा रहा, जो स्वस्थ्य व आर्थिकी के साथ पर्यावरण के लिये खतरनाक है। आज चारो तरफ नगदी फसल उत्पादन की बात हो रही है वही उतराखण्ड के सुदूर क्षेत्र के निवासी युवा द्वारिका प्रसाद सेमवाल परंपरागत फसलों व भोजन को संरक्षण देने की लौ जलाये रखे है। मेरी आपको शुभकामनाएं।

सुन्दरलाल बहुगुणा
हिमालय बचाओ आन्दोलन
उतराखण्ड के परंपरागत मोटे अनाजों से बनने वाले भोजन को आमजन मानस तक पहचान बनाने के उददेश्य से वर्ष 2000-2001 से प्रयासरत है। द्वारिका प्रसाद सेमवाल दो दशकों से उतराखण्ड के पारम्परिक भोजन को पहचान एवं आर्थिकी का जरिया बनाये जाने के लिए शुरू की गई पहल आज पूरे प्रदेश में विस्तार पा चुकी है। साथ ही इस पहल से राज्य के स्थानीय उत्पादों उपयोग बढ़ने के साथ राज्य के स्थानीय स्तर पर रोजगार की संभावनाओं में बढोतरी भी हुई है जो निश्चित रूप से राज्य के पलायन एवं बेरोजगारी जैसी समस्याओं के समाधान में भी सहायक सिद्व हो रही हैं। आपके द्वारा किये जा रहे इस प्रयास को सफल बनाने के लिए प्रदेश से संस्थान को सहयोग भी मिल रहा है, यथाः राज्य के विधालयों में सप्ताह के एक दिन मिड डे मील, पुलिस मैस में सप्ताह में एक दिन गढभोज को सम्मिलित किया जाना आदि इस अभियान की सफलता के सूचक है। बीज बम अभियान, कल के लिये जल अभियान एवं छानी अभियान से प्रकृति और समाज को लाभ मिल रहा है।
पुष्कर सिंह धामी
मुख्यमंत्री
उतराखण्ड

देवभूमी उतराखण्ड की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण संवद्र्वन एवं पर्यावरण-पारिस्थितिकी को बचाने के लिये किये जा रहे उल्लेखनीय प्रयासों एवं उतराखण्ड के परंपरागत भोजन को पहचान व बाजार दिलाने के लिये चलाये जा रहे अभियान से विकासोन्मुख राज्य की आर्थिकी को नया आयाम मिलेगा।
पे्रम चन्द अग्रवाल
पूर्व अध्यक्ष
उतराखण्ड विधान सभा उतराखण्ड

श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल द्वारा पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्बहाली के लिये गढभोज अभियान के साथ विभिन्न अभियान चालाये जा रहे है, जो समाज को पर्यावरण संरक्षण की नई दिशा दे रहे हैं। हमने साथ में देश की कई साईकिल यात्राये की जिसमें देश के विभिन्न राज्यों व क्षेत्रों से जुड़ी समृद्व सामाजिक, सांस्कृतिक व पारिस्थितिकी परिवेश के साथ साथ स्थानीय खाद्य उत्पादों के बारे में करीब से जानने का मौका मिला। साईकिल यात्रा के अनुभवों से सीखकर उतराखण्ड में गढभोज अभियान के तहत हमारे परंपरागत खानपान को मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयासों के लिये श्री द्वारिका प्रसाद सेमवाल बधाई के पात्र है।
पदमभूषण
डा.ॅ अनिल प्रकाश जोशी

परंपरगत फसलों व भोजन को संरक्षित एवं मुख्यधारा से जोड़ने के लिये चलाया जा रहा अभियान पारिस्थितिकि तंत्र की पुनर्बहाली की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है।
प्रो0 अन्नपूर्णा नौटियाल
कुलपति
हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविधालय, श्रीनगर गढ़वाल
(केन्द्रीय विश्वविधालय)

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