देहरादून -एक पुरानी कहावत है कि “सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का”। यह कहावत सूचना विभाग मे पूरी तरह चरितार्थ होते देखी जा सकती है। जहां पर एडवरटाइजिंग एजेंसियों की मनमानी चरम पर है। दो माह मे भुगतान का नियम होने के बावजूद छह छह माह तक एजेंसियों द्वारा समाचारपत्रों का भुगतान नहीं किया जा रहा है। एजेंसियों की मनमानी का यह आलम है कि वह समाचारपत्र संचालकों को निरीह और असहाय समझकर पेमेंट हेतु फोन करने पर बदजुबानी तक कर रहे हैं।
A–सूचना विभाग मे एडवरटाइजिंग एजेसियो का है बोलबाला
-उत्तराखन्ड के सूचना विभाग मे एडवरटाइजिंग एजेसियो के प्रतिनिधियों का सर्वत्र बोलबाला साफ तौर पर देखा जा सकता है। एजेंसी के प्रतिनिधियों का साम्राज्य पूरे दफ्तर मे है।
B-एडवरटाइंजिग एजेंसी को दो माह में भुगतान की है अनिवार्यता –
किसी भी समाचारपत्र को एजेंसी के माध्यम से विज्ञापन जारी होने मे समाचारपत्र से पूरे 15 फीसदी धनराशि एजेंसी द्वारा काटी जाती है।15 फीसदी कमीशन के एवज में एडवरटाइजिंग एजेंसी सम्बंधित समाचारपत्र को दो माह यानी साठ दिन मे भुगतान करने को बाध्य होती है।
C-छह माह बीत जाने के बावजूद भुगतान का अता पता नहीं
–सूर्यजागरण को कई समाचारपत्रों के संचालको ने बताया कि उनके द्वारा विज्ञापन प्रकाशित किए छह माह हो चुके हैं लेकिन दो माह का नियम होने के बावजूद छह माह बाद भी विज्ञापन के भुगतान का अता-पता नहीं है।
D-फोन करने पर सही जवाब देने के बजाय की जाती है बदजुबानी/समाचारपत्र संचालकों को समझा जा रहा है निरीह और असहाय-
सूचना विभाग की खास मेहरबानी से एडवरटाइजिंग एजेंसी से सम्बंधित कुछ लोगो के दिमाग तो सातवें आसमान पर पहुंच गए हैं। छह माह बाद भी जब समाचारपत्र संचालकों द्वारा फोन करके भुगतान करने के लिए कहा जाता है तो कुछ एजेंसी के लोग उन्हें सही जवाब देने के बजाय बदजुबानी तक करते हैं। दरअसल ऐजेन्सी संचालक सूचना विभाग के संरक्षण की दम पर समाचारपत्र संचालकों को निरीह व असहाय समझ रहे हैं।
E-सूचना के विज्ञापन मे धांधली कर सरकारी धन का अप्रत्यक्ष रूप से गबन तक किया जा रहा है –
सूचना विभाग द्वारा फुल पेज के विज्ञापन मे 52 × 33 यानी 1716 sq cm का विज्ञापन जारी किए जाने का आरओ एजेंसी को जारी किया जाता है।
लेकिन कुछ एजेंसी संचालकों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वह समाचारपत्र को केवल 51 x 33 यानी 1683 sq cm का आरओ जारी कर 33 सेमी की विज्ञापन धनराशि का अप्रत्यक्ष रूप से गबन कर रहे हैं।
ऐसे ही एक प्रकरण में जब एक समाचारपत्र द्वारा एजेंसी से 52 x 33 का आरओ मांगा गया तो उक्त ऐजेन्सी ने संशोधित आरओ तक नहीं दिया गया।
बाद में जब सूचना कार्यालय मे जब इस धांधली की शिकायत की गई। तब उस समाचारपत्र को संशोधित आरओ जारी किया गया।
लेकिन सूचना मे पहुंचकर शिकायत न करने वाले समाचारपत्रों के तो 33 cm की धनराशि का तो इस तरह गबन किया ही जा रहा है।