साहित्यकार पवन बख्शी की पुस्तक “स्मृतियों के दर्पण में अवध” का यूपी प्रैस क्लब मे हुआ विमोचन/ पूर्व मंत्री सुरजीत सिंह डंग रहे मुख्य अतिथि

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भारतीय इतिहास का प्रमुख दस्तावेज है ‘स्मृतियों के दर्पण में अवध’प्रसिद्ध इतिहासकार पवन बख्शी की पुस्तक के विमोचन में वक्ताओं ने उनके योगदान को सरा
लखनऊ। प्रसिद्ध इतिहासकार पवन बख्शी की पुस्तक ‘स्मृतियों के दर्पण में अवध’ पुस्तक भारतीय इतिहास का एक प्रमुख दस्तावेज है। कथित इतिहासकारों ने तालुकेदारों के साथ न्याय नहीं किया है। इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि वास्तविक तथ्यों पर आधारित इतिहास का पुनर्लेखन किया जाए। पवन बख्शी ने अवध के तालुकेदारों पर अपनी लेखनी चलाकर सत्य को उजागर किया है। 

उक्त बातें उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री सुरजीत सिंह डंग ने रविवार को यूपी प्रेस क्लब में कहीं। वह अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा आयोजित एवं हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध इतिहासकार पवन बख्शी लिखित पुस्तक ‘स्मृतियों के दर्पण में अवध’ के लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे।बतौर मुख्य अतिथि पधारे सुरजीत सिंह डंग ने कहा कि ‘स्मृतियों के दर्पण में अवध’ पुस्तक तालुकेदारों के उस पक्ष को उजागर करती है, जिस पर अब तक पर्दा डालने की कोशिश की जाती रही।

पुस्तक में ऐतिहासिक दस्तावेजों का उल्लेख किया जाना इसकी महत्ता को बढ़ाता है। उन्होंने कहा कि पवन बख्शी ने अपने लेखन से अवध के इतिहास को लोगों के लिए आसानी से पढ़ने और सुनने के लिए योग्य बना दिया है।

 इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ शरद पांडेय शशांक की वाणी वंदना से हुआ। तत्पश्चात निर्भय गुप्ता ने परिषद का गीत प्रस्तुत किया। इसके बाद उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में जन्में और हिमाचल प्रदेश से आए प्रसिद्ध इतिहासकार पवन बख्शी लिखित पुस्तक ‘स्मृतियों के दर्पण में अवध’ पुस्तक का लोकार्पण किया गया।

अवध के पूर्व तालुकेदार राजा राजेन्द्र सिंह एवं राजा संजय प्रताप सिंह ने कहा कि लेखक ने पुस्तक के माध्यम से तालुकेदारों के जीवन को विशिष्ट बना दिया है। राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. पवनपुत्र बादल ने पुस्तक पर समीक्षात्मक दृष्टि डालते हुए इसे युवा पीढ़ी के लिए सर्वाधिक उपयोगी बताया।

अवधी के प्रसिद्ध लेखक डॉ. राम बहादुर मिश्र ने बाजारवाद के कारण लोग इतिहास को भूलते जा रहे हैं, जबकि इतिहास पर ही आज का वर्तमान है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. मधुसूदन उपाध्याय ने कहा कि अवध का दुर्भाग्य है की आज भी इतिहास के शोधार्थी आज भी मुगलों पर शोध कर रहे, लेकिन क्षेत्रीय लेखन में अवध के इतिहास को शोध के लिए नहीं चुनना चाहते हैं।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुशील चंद्र त्रिवेदी ने कहा कि स्मृतियों में अवध पुस्तक में लेखक ने सटीक लेखन का प्रयोग करके छोटे-छोटे जिले के तालुकेदारों के बारे में लिखा चित्र भी एकत्र किए हैं। अवध प्रांत अध्यक्ष विजय त्रिपाठी ने कहा कि यह विडंबना है की विद्यालय और विश्वविद्यालय की पुस्तकों को जितना ज्यादा नुकसान 1947 के बाद पहुंचाया है, उतना अंग्रेजों ने भी नहीं किया था।

कार्यक्रम संयोजक एवं उत्तर प्रदेश के संयुक्त महामंत्री डॉ. शिवमंगल सिंह मंगल ने लेखक द्वारा हिमाचल प्रदेश में संचालित मानसिक चिकित्सा आश्रम प्रकल्प को सराहा। बलरामपुर के साहित्यकार डॉ. अनिल गौड़ एवं प्रदीप मिश्र और लक्ष्मी नारायण अवस्थी को ‘साहित्य प्रभाकर सम्मान’ से सम्मानित किया गया।

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